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ज्योतिष शास्त्र एक प्राचीन कला है। ज्योतिष शास्त्र का उल्लेख प्राचीन सनातनी ग्रंथों में मिलता है। ज्योतिष शास्त्र सूर्य, चंद्र, ग्रहों और खगोलीय घटनाओं का विश्लेषण करके भविष्य का अनुमान करता है। ज्योतिष शास्त्र मूलतः एक विज्ञान है जिसमें ग्रहों के गति के आधार पर गाणितिक गणनाओं से सटीक भविष्यवाणी हो सकती है। ज्योतिष शास्त्र के हिसाब से ग्रह हमारे जीवन में घटित होने वाली हर घटना को संचालित करते हैं। जैसे सूर्य की वजह से दिन-रात और मौसम में परिवर्तन होता है और चंद्र की वजह से पृथ्वी के समुद्र में ज्वार तथा भाटा आते हैं, वैसे ही हर एक ग्रह पृथ्वी और पृथ्वी पर रहने वाले हर एक जीव को असर करता है। हजारों सालों से सनातनी पंचांग में सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण का सटीक समय मिलता है जो आज के वैज्ञानिकों को बहुत सारे साधनों का उपयोग करके निकालना पड़ता है। ज्योतिष हमें इनके कुछ अच्छे उत्तर प्रदान कर सकता है कि ये चीजें हमारे साथ क्यों होती हैं और यह हमें आगे बढ़ने के लिए मार्गदर्शन करती है। इस तरह ज्योतिष वास्तव में लोगों को खुद को और अपने आसपास की दुनिया को बेहतर ढंग से समझने में मदद करता है।
ज्योतिष शास्त्र में आकाश या ब्रह्मांड को काल्पनिक १२ बराबर भागों में बाँटा गया है। इन १२ भागों में कोई न कोई तारा समूह आता है। इन १२ भागों को राशि कहा जाता है। प्रत्येक राशि के तारा समूह एक विशेष तरह की आकृति बनाते हैं। राशियाँ कुछ इस प्रकार हैं:
इसी प्रकार, सौर्य मंडल के ग्रहों का महत्व भी ज्योतिष शास्त्र में अधिक है। हालांकि ज्योतिष शास्त्र के ग्रह वास्तविक सौर्य मंडल के ग्रहों से अलग हैं, जैसे कि सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु। राहु और केतु वास्तव में कोई ग्रह नहीं हैं, राहु केतु एक काल्पनिक बिंदु हैं जो सौर्य मंडल को बीच से काटते हैं। इन राशियों को ग्रहों के अधीन किया गया है। जैसे कि:
इन राशियों और ग्रहों के गति के आधार पर ज्योतिष शास्त्र भविष्य में होने वाली घटनाओं का विश्लेषण करता है और यही विश्लेषण को राशिफल कहा जाता है।
जब कोई बच्चा पैदा होता है उस समय पूर्व दिशा में जिस राशि का उदय होता है उसे लग्न राशि कहते है। लग्न राशि को कुंडली के प्रथम भाव में रख कर गाणितिक गणनाओ से बाकि भाव की राशियाँ निकाली जाती है। इस तरह बनने वाली कुंडली को लग्न कुंडली कहते है। इसको ही जन्म कुंडली कहते है। ज्योतिष शास्त्र में मूलतः लग्न कुंडली का उपयोग किया जाता है। लग्न कुंडली व्यक्ति की शारीरिक संरचना और सवभाव को दर्शाती है।
जब कोई बच्चा पैदा होता है उस समय चंद्र किस राशि में परिवर्तन कर रहा होता है उस राशि को चंद्र राशि कहा जाता है। राशि कहते है। चंद्र राशि को कुंडली के प्रथम भाव में रख कर गाणितिक गणनाओ से बाकि भाव की राशियाँ निकाली जाती है। इस तरह बनने वाली कुंडली को चंद्र कुंडली कहते है। ज्योतिष शास्त्र में चंद्र राशि का उपयोग व्यक्ति का नाम रखने के लिए किया जाता है। चंद्र कुंडली व्यक्ति की मन और मन शक्ति को दर्शाती है।
जब कोई बच्चा पैदा होता है उस समय सूर्य किस राशि में परिवर्तन कर रहा होता है उस राशि को सूर्य राशि कहा जाता है। राशि कहते है। सूर्य राशि को कुंडली के प्रथम भाव में रख कर गाणितिक गणनाओ से बाकि भाव की राशियाँ निकाली जाती है। इस तरह बनने वाली कुंडली को सूर्य कुंडली कहते है। ज्योतिष शास्त्र में सूर्य राशि का उपयोग व्यक्ति के पिछले जन्म के बाकि कर्म जानने के लिए किया जाता है। सूर्य कुंडली व्यक्ति की आत्मा और आत्मा की शक्ति को दर्शाती है।
जब कोई बच्चा पैदा होता है उस समय पूर्व दिशा में जिस नक्षत्र का उदय होता है उसे जन्म नक्षत्र कहते है। जन्म नक्षत्र को कुंडली के प्रथम भाव में रख कर गाणितिक गणनाओ से बाकि भाव के नक्षत्र निकले जाते है। इस तरह बनने वाली कुंडली को नक्षत्र कुंडली कहते है। ज्योतिष शास्त्र में मूलतः नक्षत्र कुंडली का उपयोग सूक्ष्म गणनाओ के लिए किया जाता है । नक्षत्र कुंडली लग्न कुंडली से ज्यादा सटीक है।
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